राणा अवधूत कुमार, ब्यूरो चीफ-ICN बिहार
(रवींद्रनाथ की जयंती पर विशेष)
पटना। रवींद्रनाथ टैगोर एक ऐसा व्यक्तित्व हैं, जिन्हें शब्दों में बयां करना बहुत कठिन है। टैगोर के बारे में कुछ लिखने या बताने के लिए शब्द कम पड़ जाएंगे। ऐसे अद्भुत प्रतिभा के धनी थे। जिनके संपूर्ण जीवन से एक प्रेरणा या सीख मिलती है। वे एक ऐसे विरल साहित्यकारों में हैं, जो आसानी से नहीं मिलते। कई युगों के बाद धरती पर जन्म लेते हैं। धरती को धन्य कर जाते हैं। वे ऐसी छवि हैं जो जन्म से लेकर मत्यु तक कुछ ना कुछ सीख देते हैं। उनका जन्म पश्चिम बंगाल के कोलकाता के जोड़ासाकों की ठाकुरबाड़ी में हुई थी। पिता देवेंद्रनाथ टैगोर, माता शारदा देवी हिन्दू धर्म का शिद्दत से पालन करने वाले थे। बंगाली, हिन्दी व अंग्रेजी के लेखक व चित्रकार टैगोर की रचना गीतांजलि के लिए नोबेल पुरस्कार मिला था।हिन्दी-बांग्ला साहित्यकार के साथ रवींद्रनाथ टैगोर ने एक चित्रकार, कलाकार, नाटककार, रंग कर्मी, पत्रकार व कला के क्षेत्र में देश को सुशोभित किया था।
रवींद्रनाथ टैगोर अपने आप में बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। कोलकाता के जोड़ासाकों की ठाकुरबाड़ी में प्रसिद्ध व समृद्ध बंगाली परिवार में एक था टैगोर परिवार। इसके मुखिया देवेंद्रनाथ टैगोर जो कि ब्रह्म समाज के वरिष्ठ नेता थे। वे बहुत सुलझे व सामाजिक व्यक्ति थे। उनकी पत्नी शारदादेवी बहुत सीधी व घरेलू महिला थी। रवींद्रनाथ उनके सबसे छोटे पुत्र थे। बड़े होकर यह गुरुदेव के नाम से प्रसिद्ध हुए। रवींद्रनाथ टैगोर जन्म से बहुत ज्ञानी थे। इनकी प्रारंभिक शिक्षा कोलकाता के प्रसिद्ध सेंट जेवियर स्कूल में हुई। इनके पिता शुरू से समाज के लिये समर्पित थे वे रवींद्रनाथ को बैरिस्टर बनाना चाहते थे। जबकि उनकी रूचि साहित्य में थी। रवींद्रनाथ जी के पिता ने 1878 में उनका लंदन के विश्वविद्यालय में दाखिला कराया। लेकिन बैरिस्टरी की पढ़ाई में रूचि नहीं होने से 1880 में बिना डिग्री लिए वापस आ गए। 1883 में रवींद्रनाथ टैगोर का विवाह मृणालिनी देवी से हुआ।
रवींद्रनाथ टैगोर जन्मजात अनंत अवतरित पुरुष थे। उनकी रूचि बहुत विषयों में थी। हर क्षेत्र में उन्होंने ख्यति पायी। वे एक महान कवि, साहित्यकार, लेखक, चित्रकार व अच्छे समाजसेवी बने। बाल्यकाल में कोई बालक खेलता है, उस उम्र में रवींद्रनाथ टैगोर ने अपनी पहली कविता लिखी थी। पहली कविता लिखी उस समय उनकी उम्र आठ वर्ष थी। किशोरावस्था में कदम भी नही रखा कि 1877 में 16 वर्ष की उम्र में लघुकथा लिखी। टैगोर ने लगभग 2230 गीतों की रचना की। भारतीय संस्कृति में ख़ासकर बंगाली संस्कृति में अमिट योगदान देने वाले एक बड़े साहित्यकार थे। रवींद्रनाथ टैगोर कभी न रुकने वाले, निरंतर कार्य करने पर विश्वास रखते थे। शांति निकेतन की स्थापना गुरुदेव का सपना था। जो उन्होंने 1901 में पूरा किया। वह चाहते थे कि प्रत्येक विद्यार्थी कुदरत या प्रकृति के सम्मुख पढ़े। जिससे उसे अच्छा माहौल मिले। शांति निकेतन में पेड़-पौधों व प्राकृतिक माहौल में पुस्तकालय की स्थापना की। टैगोर के अथक प्रयास के बाद शांति निकेतन को विश्वविद्यालय का दर्जा प्राप्त हुआ। जिसमें साहित्य कला के, अनेक विद्यार्थी अध्यनरत हुए।
रवींद्रनाथ टैगोर को अपने जीवन में कई उपलब्धियों व सम्मान से नवाजा गया। लेकिन उन्हें गीतांजलि के लिए 1913 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। रवींद्रनाथ टैगोर ने देश को व बांग्लादेश को उनकी सबसे बड़ी अमानत के रूप में राष्ट्रगान दिया है। जो उनकी अमरता की निशानी है। हर महत्वपूर्ण अवसर पर राष्ट्रगान गाया जाता है। जिसमें भारत का जन-गण-मन है व बांग्लादेश का आमार सोनार बांग्ला है। टैगोर ने अपने जीवन में तीन बार अल्बर्ट आइंस्टीन जैसे महान वैज्ञानिक से मिले जो रवींद्रनाथ टैगोर को रब्बी टैगोर कह पुकारते थे। देश की आजादी की लड़ाई में योगदान के दौरान राष्ट्रपिता मोहनदास करमचंद गांधी को सबसे पहले महात्मा की उपाधि से नवाजी थी।
एक ऐसा व्यक्तित्व जिसने अपने प्रकाश से सर्वत्र रौशनी फैलाई। भारत के बहुमूल्य रत्नों में से एक हीरा जिसका तेज चहुंओर दिशाओं में फैला। जिससे भारतीय संस्कृति का अदभुत साहित्य, गीत, कथा, उपन्यास, लेख प्राप्त हुए। ऐसे व्यक्ति का निधन सात अगस्त 1941 को कोलकाता में हुआ। रवींद्रनाथ टैगोर एक ऐसे व्यक्तित्व हैं जो मर कर भी अमर हैं।